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संजर से अजमेर का सफ़र – पार्ट 3

दास्ताने हुज़ूर ख़्वाजा ग़रीब नवाज़ रदिअल्लाहू तआला अन्हु

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“हुज़ूर ख्वाजा ग़रोब नवाज़” की विलादत माहे ‘रजबुलमुरज्जब’ की 14 तारीख, ‘पीर’ के दिन सुबह सादिक के वक्त हुई थी। यूँ तो आपकी विलादत के बारे में बेशुमार करामतो का ज़िक्र मिलता है, जिनमे से चंद करामतो को ही पेश किया जा रहा है। जब आपकी विलादत हुई तो ज़मी से लेकर आसमां तक इतना नूर फैला हुवा था, की जो लोग तहज्जुद की नमाज़ पढ़ा करते थे, जब उनकी आँखे खुली तो  उन्हें भी ये गुमान हुवा की वो आज उठ क्यों नहीं सके यहाँ तक की लोगो को लगा की उनकी फज़र की नमाज़े तो कही कज़ा नहीं हो जाएगी।

 

आपकी वालिदा फरमाती है की ‘जब आप दुनिया में तशरीफ़ लाये तो वो ये देख कर हैरान रह गयी थी की पैदा होते ही इस बच्चे ने सजदा कर अपने रब का शुक्र अदा किया, सिर्फ इतना ही नहीं उस वक्त इस नवजात शिशु की ज़बाने मुबारक से कलिमा ए तैय्यिबा “ ला इला हा इल्लललाहू मुहम्मदुर रसूलल्लाह” का विर्द हो रहा  था, जिसे वो उस वक्त भी अक्सर  शब्  से लेकर सहर  होने तक विलादत होने से  पहले भी सुना करती थी’

 

आपकी विलादत के बाद आपके वालिद ने अपने बेटे को प्यार से चूमा और फिर आपका अकीका किया गया, सभी आपके घर तशरीफ लाये, जिसने भी आपका नूरानी चेहरा देखा वो बस देखता ही रह गया, आसपास की सारी औरते घर आती और आपकी बलाये लेती नहीं थकती थी। अक्सर फ़रिश्ते, हूरो मलाइका भी आपकी अयादत को सुबहो शाम आया करते और आकर आपको झुला झुलाते।

और फिर जब आपका ‘नामे मुबारक’ रखने की बारी आई, तो आपके वालिद ने अपनी अहलिया से मशवरा किया तो उन्होंने अपने शौहर ‘गयासुद्दीन’ को बतलाया की इस बच्चे का नाम तो खुद रब ने ही तजवीज़ कर “मुईनुद्दीन” रख दिया है और जो कुछ भी बीबी माहेनूर ने अपने शौहर को बतलाया वो कुछ इस तरह है, आपने फरमाया की  “विलादत के बाद मैंने देखा की हूरे मेरे पास आई है, और आकर मेरे चारो तरफ पर्दा कर दिया है, और फिर फरिश्तो का नुज़ूल हुवा, फिर उनके बाद बहोत से नुरानी चेहरे वाले लोग भी नज़र आये,  वे सभी खुश होकर इस नौ निहाल की बलाए ले रहे और सभी एक दूसरे को मुबारकबाद देकर अपनी ख़ुशी का इज़हार कर रहे थे।

 

उन्हें देख कर मै हैरान और  परेशान  थी, और घबरा रही  थी की तभी उनमें से एक बुज़ुर्ग ने मुझसे मुखातिब होकर कलाम किया और कहा “ अये अम्मा घबराओ मत, “हम इस दौर के रुए ज़मी के “कुतुबो अब्दाल” है । और इस बच्चे की अयादत को आये हुवे है, फिर खुश होकर उन्होंने मुझसे कहा  “मुबारक हो अम्मा तेरे घर में आज “मुईनुद्दीन” की विलादत हुवी है और ये नाम हमने इसे नहीं दिया बल्कि खुद रब तआला की तरफ से तरवीज़ किया गया है,’ इतना कहकर वो आँखों से ओझल हो गए। ‘मुझे नहीं पता जो कुछ मैंने देखा वो कोई ख्वाब था या हकीकत’ सारी बाते सुनकर उनके शौहर हज़रत  गयासुद्दीन ने कहा की जो कुछ तुमने देखा वो हकीकत था, “विलादत से पहले ही तमाम बुजुर्गो ने, हसन ओ हुसैन और बाबा अली ए मुर्तुजा ने यहाँ तक की  खुद रसूले खुदा ने भी इस बच्चे के विलादत की  बशारत देकर इसका नाम “ख्वाजा मोईनुद्दीन हसन” ही तजवीज़ किया था, और फ़रमाया था की ‘ये अल्लाह की अमानत है और ये आगे चलकर  दीन को रौशन करने वाला “मुईन ए दी, होगा i  लिहाज़ा उन्होंने इस बच्चे का नाम “मोईनुद्दीन हसन” रखा और  प्यार से वे  अक्सर उन्हें  “हसन” कहकर पुकारा करते थे।

आपकी ‘सखावत’ और ‘मोहब्बत’  का ये आलम था, की जब आप शीर ख़्वार (दूध पीते) बच्चे थे, तब अगर मोहल्ले की कोई औरत किसी दूध पीते  बच्चे को लेकर  आपके घर तशरीफ लाती, और यदि वो बच्चा रोने लगता था, तो आप अपनी वालिदा  की तरफ इशारा करते और उनका इशारा समझ कर उनकी वालिदा उस बच्चे को अपना दूध पिला देती, जिस पर आप  खुश होकर मुस्कुरा दिया करते I जब आप कुछ बड़े हुवे तो साथ के बच्चे आपको खेलने कूदने और शरारत करने कहते तो आप खामोश रहते, और उनसे कहते के हमें ये नहीं भूलना चाहिए की रब ने हमें अपनी इबादत के लिए पैदा किया है I आप अपने वालदैन से जो कुछ अच्छी बाते सीखते उसे अपने दोस्तों को भी सिखाते i  अक्सर आप अपने हम उम्र बच्चो को अपने साथ अपने घर पर लाते और उन्हें मोहब्बत के साथ फल, मेवे दूध और खाना खिलाते, और जब वे बच्चे पेट भर खा लेते और खुश हो जाते, तो आप भी खुश हो जाते, यहाँ तक की अक्सर अपने हिस्से की चीज़े भी अपने  दूसरे साथियों को दे देते और उनको खुश देखकर  बहोत खुश होते।

 

जब आप बहोत छोटे थे, तो एक रोज़ ‘हुजुर ग़रीब नवाज़’ ‘ईद’ की नमाज़ पढने घरवालो के साथ ‘ईदगाह’ जा रहे थे I आपके वालदैन ने अपने बेटे “हसन” के लिए ईद के मौके पर खूब अच्छे व कीमती लिबास सिलवाया था, जिसे पहेन कर वे ईदगाह में नमाज़ पढने जा रहे थे। आसपास के आपके सारे दोस्त भी साथ थे,  सभी ने नया कपडा पहना था, और वे सब  उछलते कूदते ईदगाह की तरफ बढ़ रहे थे, मगर उस वक्त भी आप ख़ामोशी से  कलमे तैय्यबा का विर्द करते चलते जा रहे थे, तभी उन्होंने रास्ते में एक ‘नाबिने बच्चे’ को देखा, वो भी ईदगाह जा रहा था, उसके जिस्म पर “पुराना लिबास’ था , आप ख़ामोशी से घर वालो से अलग होकर उस बच्चे के पास गये, और आपने उस बच्चे से  पूछा की “आज के दिन तुमने  पुराना लिबास क्यों पहना हुवा है,” उस बच्चे ने जवाब दिया की “वो यतीम है, उसकी माँ के पास इतने पैसे नहीं है, की वो नया लिबास खरीद सके, इसलिए उसने पुराना लिबास पहना है,” सुनकर आपकी आँखों में आंसू आ गए, और उसी वक्त आपने अपना पहना हुवा कीमती लिबास उतारा और उस बच्चे को पहना दिया और खुद पुराना लिबास पहेंन लिया, वालदैन ने जब देखा तो सारा माजरा समझ गए, और वे भी अपने बच्चे की सखावत देखकर मुस्कुरा उठे, आपने इन्ही पुराने कपड़ो में  ईदगाह गए और वहां  ईद की नमाज़ अदा की। वो नाबीना बच्चा भी आपके साथ ही  था, आप उस बच्चे की ख़ुशी देखकर  खुश हो रहे थे, और सजदे में अपने रब से दुवा कर रहे थे, “अये अल्लाह इस नाबीने बच्चे को और इसकी वालिदा को सारे जहाँन की खुशिया अता कर  दे, भले ही तू चाहे तो इसके बदले में इसके हिस्से के सारे  गम इस मुईन को  दे दे।

 

भले ही किताबो में इतना वाक्या ही दर्ज है, मगर मेरे दिल से आवाज़ आई, की रब ने ग़रीब नवाज़ की इस दुवा के सड़के उस नाबिने बच्चे की किस्मत जगा दी होगी, और न सिर्फ उसकी बिनाई वापस आ गयी होगी, बल्कि वो और उसकी वालिदा को भी सारे जहाँ की नेमत और  खुशिया अता कर दी होगी , जिससे मालुम हुवा की आपको दुनिया ‘ग़रीब नवाज़’ यूँ ही नहीं कहती है,  बल्कि   आपसे बढ़कर   नर्म दिल, सखी और “ग़रीब नवाज़” हिन्द में और दूसरा  कोई नहीं।

 

// सुभानअल्लाह //
क्रमशः …

 बकलम:- एड.शाहिद इक़बाल खान

 // 4/2//2019 //

 

संजर से अजमेर का सफ़र – पार्ट 1 

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