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हुज़ूर ग़ौसे आज़म रज़ियल्लाहु तआला अन्हु पार्ट-4

मुश्किला-ती अदद- दारीम- मा अल मदद या गौसे आ’ज़म पीरि-मा

तर्जुमा : बेशुमार मुश्किलात ने हमको घेर लिया है, ऐ हमारे पीर सरकार गौसे आ’ज़म رضي الله تعالي عنه हमारी मदद फरमाइये। आमीन….

हज़रत शैख़ मुहयुद्दीन अब्दुल क़ादिर जिलानी रज़ियल्लाहु तआला अन्हु फ़रमाते है :

अगर इंसान अपनी तबई आदत को छोड़ कर शरीअते मुतह्हरा की तरफ रुज़ूअ करे तो हक़ीक़त में ये ही इताअते इलाही عزوجل है, इससे तरीक़त का रास्ता आसान होता है।

☝🏽अल्लाह इर्शाद फ़रमाता है :

और जो कुछ तुम्हे रसूल अता फरमाए वो लो और जिस से मना फरमाए बाज़ रहो।

📗अल कुरान – पारह 28

👉आपने यह भी फ़रमाया है की सरकारे मदीना ﷺ की इत्तिबाअ ही अल्लाह عزوجل की इताअत है, दिल में अल्लाह عزوجل की वहदानियत के सिवा कुछ नहीं रहना चाहिये, इस तरह तू फनाफ़िल्लह के मक़ाम पर फाइज़् हो जाएगा और तेरे मरातिब से तमाम हिस्से तुझे अता किये जाएगे अल्लाह عزوجل तेरी हिफाज़त फ़रमाएगा, मुवाफक़्ते खुदा वन्दी عزوجل हासिल होगी।

✒हवाला
📚 हुज़ूर ग़ौसे पाक के हालात,
सफा 82

जिससे मालूम हुवा की अल्लाह अपने हबीब के सदके वो तुफैल न सिर्फ़ वलियो को बल्कि हर उस मोमिन को उसके मर्तबे के मुताबिक इल्म अता करता है।

🥏 इल्म की प्यास और इश्के इलाही का जज़्बा अल्लाह के वलियों को बेचैन कर देता है, और ये तो हुज़ूर गौसे आज़म थे, जिनके इल्म और इश्क़ की इंतेहा को सिवाय अल्लाह और उसके महबूब के कोई नही जान सकता है, आपको मोहियुद्दीन यूं ही नही कहा गया है । आप फ़रमाते है

🌠जब इश्के इलाही सीने में मचलने लगा और जो कुछ भी वाक्यात और कैफियत मुझ पर ज़ाहिर हो रही थी,उससे मैं बेचैन हो उठा और फिर मैं अपनी वालिदा की खिदमत में हाज़िर होकर दरखास्त किया

🥏ऐ अम्मीजान आपसे इल्तेजा है की अब आप मुझे अल्लाह के हवाले कर दें और मुझे बग़दाद जाने की इजाज़त दे ।

क्योकि उस वक्त बगदाद इल्म का मरकज़ हुवा करता था जहाँ बहोत से नामचीन उलमा ए कराम वो वली अल्लाह भी मौजूद थे लिहाज़ा आप उनकी सोहबत में रहकर इल्मे दीन हासिल करना चाहते थे ।

आपकी वालिदा ने समझाया

बेटा अभी बहोत छोटे हो कुछ और बड़े हो जाओ फ़िर चले जाना ।

तो मैंने अपनी कैफ़ियत अपनी वालिदा को बता दिया । आपकी वालिदा भी इस बात को अच्छी तरह से जानती थी की अब बेटे को रोका नहीं जा सकता है और फ़िर अल्लाह की रजा को भी वो बखूबी जानती थी लिहाज़ा आपकी वालिदा ने आपको बग़दाद जाने की इजाज़त दे दी ।

जाते वक्त आपकी वालिदा ने चालिस दीनार लाकर दिये और फरमाया

बेटा मेरे पास कुल 80 दिनार है जिसमें से 40 दिनार तुम्हारे भाई अहमद के लिए है । वालिदा ने वो दीनार आपके कपड़ो के अंदर बांध कर सिल दिए ताकि वो किसी को आसानी से नज़र ना आ सके ।

और फिर इस तरह आपके बग़दाद जाने की तैयारी हो गई ।

🌋 आगे जो वाकया हुवा वो बहोत मशहूर है जिसे ज़्यादातर लोग जानते ही है । यहां तक की इस वाकये को जैन धर्म के एक प्रसिद्ध मुनि ने भी अपने प्रवचन में बतलाया है ।

आपकी वालिदा ने रुख़सत करते वक्त बेटे को नसीहत देते हुए फ़रमाया था

‘बेटा मुझसे वादा करो की हमेशा सच बात कहोगे और झूट से हमेशा परहेज़ करोगे।

आपने वादा किया और जब रुख्सत हुए तो आपकी वालिदा ने कहा

मै तुम्हे अल्लाह के हवाले करती हूँ ‘।अल्लाह हमेशा तुम्हारी हिफाज़त करेगा।

🥏इसके बाद हुज़ूर ग़ौसे आजम एक काफिले वालो के साथ बग़दाद की तरफ रवाना हुवे।

ये काफिला जब एक बियाबान जंगल मेँ पहूँचा तो साठ डाकुओ ने जो की घोड़े पर सवार होकर आ रहे थे सभी हथियारों से लैंस थे उन्होंने इस काफिले को रोक लिया । और फ़िर काफिले वालो के सामानों को लूटने लगे ।

उनमे से एक डाकू ग़ौसे आजम के पास भी आया और कहा कि बच्चे तेरे पास भी कुछ है क्या ?

ग़ौसे आजम ने बेखौफ होकर मासूमियत से जवाब दिया

हाँ! मेरे पास चालिस दीनार हैँ।

उस डाकू ने आपकी इस बात को मजाक़ समझा और वहाँ से चला गया । और फिर दूसरा डाकू आया उसने भी आपसे यही सवाल किया तो आपने उसे भी इसी तरह बेख़ौफ़ होकर यही जवाब दिया । उस डाकू ने भी आपके आसपास देखा उसे कुछ नज़र नही आया, उसने भी इसे बच्चे का मजाक़ समझा और बिना तलाशी लिए चला गया । इसी तरह कुछ और डाकुओ के द्वारा भी आपसे यही सवाल पूछा गया तो आप ने सभी से यही फर्माया की मेरे पास चालिस दीनार हैँ।

जिसे सुनकर वे डाकू चिढ़ गए और उन डाकूवोँ ने आप को पकड़ कर अपने सरदार के पास लाया।

सरदार ने भी आपसे वही सवाल किया और फिर वही जवाब मिलने पर उसने हँसते हुवे पूछा

बच्चे अब ये भी बतला दो की दीनार कहाँ हैँ ?

आपने जवाब दिया

वो दीनार मेरी कमर के साथ बँधे कपड़े में हैँ ।

सरदार ने आगे बढ़कर तलाशी ली तो वाक़ई चालिस दीनार कपड़ो से निकल आऐ। डाकुवोँ का सरदार बड़ा हैरान हुवा कि इस लड़के ने अपना माल आखिर बताया क्योँ ? जब की डाकुवोँ से माल छुपाया जाता है डाकुवोँ के सरदार ने बड़े तअज्जुब के साथ ग़ौसे आजम से पूछा कि

बच्चे तुमने ये माल छुपा कर रखा था तो फिर हमे बतलाया क्यो ?

आपने फरमाया

🌋 मेरी वालदह ने मुझसे हमेशा सच बोलने का वादा लिया था इसीलिये मैने सच बोला और हमेशा सच ही बोलता रहुँगा इन शा अल्लाह ।

अगर और कोई बोलता तो शायद डाकू का दिल ना पसीजता मगर ये तो गौसे आज़म थे जिनके चेहरे में ना ही खौफ था ना ही उन दीनारो का मोह डाकुवोँ के सरदार ने गौसे आज़म के रूखे अनवर का दीदार गौर से किया आपकी बाते सुनकर और हुज़ूर गौसे आजम के रूखे अनवर की ज़ियारत से उसके दिल में ईमान की जोत धीमे धीमे रोशन होने लगी थी ।

इस बार उस डाकू ने बेहद नर्मी से पूछा बेटा मेरे एक आख़री सवाल का जवाब दो बेटा तुम्हारे वालिद या कोई और तुम्हारा करीबी कहा है और यूँ अकेले सफ़र करने का तुम्हारा सबब क्या है ?

आपने जवाब दिया

मेरे वालिदे मोहतरम अब इस दुनिया मे नही है।

और मैं इल्म का तालिब हूँ, इल्म हासिल करने बग़दाद जा रहा हूँ।

आपकी बाते सुनकर और आपके चेहरे का नूर देख कर डाकुओ के सरदार की कैफियत अब पूरी तरह से बदल चुकी थी, और वो बेसाख्ता रोने लगा और कहा की

बेटे तूने अपने वाल्दा के साथ किये हुऐ वादे को बखूबी बेख़ौफ़ होकर निभाया और एक मैँ हूँ जिसने अपने रब से वादा तो किया हूँ मगर आज तक उसे निभा न सका

कह्कर वो फूट फूट कर किसी बच्चे की तरह रोने लगा।

उस डाकू ने सच्चे दिल से तौबह की और फिर अपने साथी डाकुवोँ से कहा कि

जावो अब तुम आज़ाद हो मेरे साथ तुम्हारा कोई वास्ता नहीँ क्योकि आज से मै सब बुरे कामो से तौबा करता हूँ और आज के बाद फ़िर कभी डाका नहीं डालूँगा। आज मैं इस नेक और शेरदिल बच्चे के सर पर हाथ रख कर कसम खाता हूँ। कभी कोई बुरा काम नहीं करूंगा।

हुज़ूर गौसे आज़म और फिर अपने सरदार की बाते सुनकर उन डाकुओ के दिल में भी ईमान की लौ रौशन हो उठी थी लिहाज़ा सरदार के अलावा भी बाकि सभी डाकूवोँ ने भी जवाब दिया

आप हमारे सरदार हैँ हम सब भी आज से इस बुरे काम से तौबह करते हैँ।

इस तरह सबने सच्चे दिल से तौबह की और लूटा हुवा माल काफ़िले वालो को वापस कर दिया । और डाकुओ का वो सरदार जंगल की तरफ भागता चला गया ।

क्रमशः …

तालिबे इल्म:एड.शाहिद
इक़बाल ख़ान,चिश्ती-अशरफी

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