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रिपोर्टर हरिराम ऑफिस से निकला। बेसमेंट में संपादक की कार के पास खड़ा हो गया। इधर-उधर सीसीटीवी कैमरे की नज़र से बचकर यहां तक आया। जेब से कील निकाली और संपादक तोपचंद की कार में खरौंचे मारने लगा। अब आप अंदाजा लगाइए कि कितना ज्यादा भरा पड़ा बैठा था हरिराम।
दिल फट गया था। अंदर ही अंदर घुटता, गालियां देता, लेकिन उखाड़ कुछ पाता नहीं था।
तोपचंद ने हरिराम की हालत यह कर दी थी कि जेब में पारले-जी बिस्कुट लेकर दफ़्तर जाना पड़ रहा था। खाने की छुट्टी देने को भी तैयार नहीं।
दरअसल चम्मचलाल ने तोपचंद के कान पर जबरदस्त कब्जा जमाया था। उसने ये बता दिया था कि ये लोग खाने के नाम पर एक-एक घंटे गायब रहते हैं। बस, टिफिन टाइम बंद। कहते हैं न… जाकै पैर न फटी बिवाई, वो क्या जाने पीर पराई..। हरिराम के दर्द को हरिराम के अलावा कौन समझ सकता था। वो बेचारा पेट में चूहों का डांस इंडिया डांस कांपिटिशन कराए या खबर लिखे…लिहाजा सस्ता, सुंदर, मजबूत, टिकाऊ पारले-जी खाकर अपना ग्लूकोज मैनेज करने लगा। खुन्नस इसी बात की थी कि तोपचंद बिना काम के चम्मचलाल के कांधे पर हाथ डालकर गुपचुप तरीके से गुपचुप खाने निकल जाता। आने के बाद हरिराम के सामने ही खट्टी-खट्टी डकारें लेकर टेस्ट बताने लगता। हरिराम के मुंह में गुपचुप का पानी जरूर आ जाता, लेकिन ये दिल जलाने के लिए पट्रोल का काम करता। सोचता- हम साले पारले-जी खा-खाकर खबर लिख रहे हैं और वो बिना खबर लिखे जी खा रहा है। भगवान, एक खून माफ़ करवा दो…।
बहरहाल, तोपचंद के तौरतरीकों से मैनेजमेंट भी अब खफा था। शिकायतें आ रही थीं। मैंनेजमेंट ने कॉल लिया…संपादक तोपचंद को बदला जाए। ये बात ऑफिस में फैली। हरिराम सीधे दक्षिणमुखी हनुमान जी के मंदिर पहुंचा। पेड़े चढ़ाए और बोला- हे बजरंग बली…देर आए, दुरुस्त आए…पर आने वाला अगला चुस्त आए, कहीं चम्मचलाल फिर हावी न हो जाए…। मंदिर के भीतर मन में अंर्तनाद हुआ। जैसे बजरंगबली कह रहे हों- हरिराम! चम्मचलाल की प्रकृति अनूठी है। उसकी प्रक्रिया में देर हो सकती है, लेकिन परिणाम में नहीं..। इसलिए काम करते हुए चम्मचलाल की प्रकृति का भी आचमन करो..।
हरिराम डर गया। अब इस अंर्तनाद को उसने बजरंगबली का आदेश मान लिया। सोचा, नई शुरुआत की जाए। ऑफिस पहुंचा। रिसेप्शनिस्ट से हाथ मिलाया, बोला- कैसे हैं सर आप? रिसेप्शनिस्ट कुछ समझ न सका…बोला- जी सर, ठीक हूँ…। थोड़ा आगे बढ़ा चपरासी चोमूदास मिला…हरिराम फिर बोला- चोमूदास जी को नमन ्, कैसे हैं सर। चोमूदास बोला- ठीक हूं भैयाजी…। हरिराम के इस बिहेव को आफिस के अंदर के कुछ बिहेवियरल एक्सपर्ट नोटिस कर रहे थे। रिपोर्टर फागू ने कहा- तोपचंद के जाने का सदमा लगा है साले को…खुशी के मारे पगला गया है…
दूसरा रिपोर्टर चिप्पड़मल बोला- नहीं बे…उसकी हालत ऐसी है…
हरि नाम भजते-भजते, मिले हरि न राम
ताेपचंद के जाते ही हो गया इनका काम
इसकी गूंज हरिराम के कानों तक पहुंच गई। और हंसने लगे..।
हरिराम भी हंसता रहा। अब उसने अपने साथी चिप्पड़मल और फागू से बोला- सरजी नमस्कार…कैसे हैं आप…? रिसेप्शनिस्ट, चपरासी चोमूदास को नमस्कार करते-करते अचानक फागू और चिप्पड़मल को भी नमस्कार! लोग हतप्रभ थे, लेकिन हरिराम मुस्कुरा रहा था।
चिप्पड़मल से रहा न गया, उसने पूछा- अबे हरिराम..ये क्या तमाशा है। साले, तुम चपरासी से लेकर रिसेप्शनिस्ट और सबको नमस्कार किए पड़े हो…पगला गए हो क्या तोपचंद के ट्रांसफर की खबर से..।
हरिराम- नहीं मित्र चिप्पड़मल…मैं पगलाया नहीं हूं। मैं प्रैक्टिस कर रहा हूं अगले मैच की। तोपचंद से साथ खेली पारी में बुरी तरह पिटा हूं। हारा हूं। अलगा मैच हारना नहीं चाहता। इसलिए बैटिंग की प्रैक्टिस कर रहा हूं। और फिर माहौल कुछ ऐसा है कि-
आते-जाते करते चलो सबको हैलो हाय
न जाने कब कौन चूतिया संपादक बन जाए
इसलिए सबको नमस्कार कर रहा हूं। इतना कहना ही था कि चम्मचलाल वहां आ गया। हरिराम ने देखते ही कहा- चम्मचलाल जी, नमन….कैसे हैं आप?
यह सुनकर चिप्पड़मल और फागू पेट पकड़-पकड़कर हंसने लगे।
चम्मचलाल को कुछ समझ न आया। बोला- क्या माजरा है भाई?
फागू- कुछ नहीं बेटा…हरिराम को लग रहा है अगला संपादक तू हो सकता है…इसलिए अभी से नमस्कार-चमत्कार कर रहा है।
अगले दिन तोपचंद के ट्रांसफर का आदेश आ गया। उसकी विदाई के लिए छोटा सा समारोह आयोजित किया गया। सभी को दो-दो शब्द कहने के लिए कहा गया था…। चम्मचलाल बोला- तोपचंद जी मेरे लिए केवल एक नाम नहीं थे (मन में बोला- एटीएम थे)। ऐसी कितनी खबरें मैंने कीं, जिसमें उन्होंने हौसला बढ़ाया (मन में – और मैंने खूब कमाया)। वो मेरे लिए भगवान बनकर आए (मन में- कुबेर देवता।) उन्होंने मुझे इतनी स्वतंत्रता से काम करने का अवसर दिया (मन में- कि मैंने खूब वसूली की), जिसने मुझे आदमी बना दिया। वे जा रहे हैं, तो लग रहा है मेरे भगवान रूठ रहे हैं।
इतना कहकर चम्मचलाल फफक-फफककर रोने लगा। तोपचंद ने सहारा दिया और कहा- चुप हो जाओ यार चम्मचलाल…तुम भी कमाल करते हो…तुम जो हो, वो तुम्हारी योग्यता के कारण है..मैं तो केवल निमित्त मात्र हूं..।
पीछे बैठे चिप्पड़मल, फागू और हरिराम एक दूसरे को देखकर मुस्कुराने लगे।
अब हरिराम से कहा गया दो शब्द के लिए।
हरिराम बोला- आदरणीय तोपचंद जी…आप जैसे महान संपादक हमें शायद अब कभी न मिलें(मन में- शायद क्या, कभी मिले ही न।)। आप जहां भी रहेंगे, कम से कम मुझे तो हमेशा याद आएंगे ही…आपसे केवल एक निवेदन है कि जब भी आप शहर आएं, मुझे पहले जरूर बताएं (मन में- ताकि मैं छुट्टी लेकर कहीं बाहर निकल जाऊं)।
अब सबसे आखिरी में बारी तोपचंद की थी…
तोपचंद बोला-
जब मैं यहां आया था, तब अखबार रसातल की ओर जा रहा था, लेकिन आज यह ऊंचाइयों की ओर है।
(तभी हरिराम ने बाजू वाले से कहा – हां, अगर मुर्गा बोलेगा नहीं, तो सवेरा कैसे होगा)
अगले ही पल तोपचंद ने कुछ ऐसा कहा कि हरिराम के होश फ़ाख्ता हो गए। तोपचंद ने कहा- इस पूरी यूनिट में कोई यदि सबसे योग्य है, तो वह है हरिराम…
इतना सुनते ही सबमें खुसर-फुसर शुरू हो गई। ये क्या हुआ…अपने अंतिम समय में तोपचंद हरिराम की तारीफ़ कर रहा है। तोपचंद बोला- मैंने हरिराम को ज्यादा से ज्यादा सताया, ज्यादा से ज्यादा तपाया, क्योंकि मैं जानता था कि केवल हरिराम ही है, जो तप सकता है, सह सकता है। आप सबको मैं जाते-जाते एक खुशी का समाचार और सुनाना चाहता हूं कि जब मुझसे पूछा गया कि इस एडिशन में योग्य व्यक्ति का नाम बताया जाए, तो मैंने हरिराम का नाम सुझाया।